जनगणना जाति के आधार पर
तब तो जाति-प्रथा कभी खत्म न होगी
कभी अगड़ी जाति के लोग का दबदबा
अब पिछडी कही जाने वाली जातियों का दबदबा
अन्याय तब भी हुआ था
अब भी हो रहा है
एक ही घर में चार- चार सरकारी नौकरी
दूसरे घर में सब बेकार
अच्छा प्रतिशत लाकर
जी तोड़ मेहनत कर
फिर भी एडमीशन नहीं
नैराश्य में पूरी पीढी
सोच रही है
जो अपराध हमने किया नहीं
उसका दंड हमें क्यों
यह प्रतिशोध है क्या हमारे पूर्वजों के कर्मों का हमसे
हमें इससे कोई मतलब नहीं
हम चपरासी बनने को तैयार
सफाईकर्मी बनने को तैयार
लेकिन वह भी मयस्सर नहीं
हम ओपन कैटिगरी के बच्चे हैं न
गणना क्यों नहीं आर्थिक आधार पर हो
गरीब को पहले रोटी की जरूरत है
जाति की नहीं
प्रतिस्पर्धा हो
योग्यता हो
पक्षपात न हो
हर किसी को मौका मिले
सबका अधिकार समान
तभी तो असली प्रजातंत्र।
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