हर बार झुकी मैं
गलती थी या न थी
फिर भी मान लिया
सब चुपचाप सह लिया
मजाक , तोहमत इत्यादि
मन को कचोटता था
पर चुप रहती थी
अपनों को नाराज करना
जिससे मैं प्यार करती हूँ
उनसे दुराव नहीं चाहती थी
गलती किसी की भी हो
माध्यम हम ही बनें
ऐसा लगा कि
हम ऐसे ही हैं
हमारा वजूद ही ऐसा है
हमें न जाने क्या क्या संज्ञा दे दी गई
देखने का दृष्टिकोण बदल गया
अचानक महसूस हुआ
हमेशा हम ही क्यों झुकें
जिनके कारण यह सब कर रहे हैं
वे ही कोई तवज्जों नहीं दे रहें
अपना समझने की बात ही छोड़ दो
बत एहसान का एहसास दिलाया जाता है
अब बस हो चुका
न किसी का एहसान चाहिए
अब अपने अस्तित्व की लाज रखनी है
हम भी बहुत कुछ है
यह बहुतों को समझाना है
नाता तो नहीं तोड़ना है
पर वाजिब का भी ख्याल रखना है
कब तक झुके
रिश्ता संभाले
जिम्मेदारी तो हर किसी की बनती है
हम पास आए
तुम दूर दूर जाओ
यह तो अब नहीं
और कभी नहीं ।
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