आज लगता है
मैं बुद्ध बन जाऊं
सब छोड़कर
माया मोह से मुक्त होकर
एकांत में रम जाऊँ
भागकर तो जा नहीं सकती
उनकी तरह किसी बोधि वृक्ष के नीचे
आधी रात को
घर में ही रहूँ
पर सबसे निर्लिप्त रहूँ
बहुत हो चुका सब
जिम्मेदारियां निभाते - निभाते जिंदगी थक गई
कभी कोई रूठा
कभी कोई क्रोधित हुआ
कभी किसी ने तोहमत लगाई
कभी किसी ने अपमानित किया
सब झेलते रहे
मान मनोवव्वल करते रहें
तब भी कोई खुश नहीं रहा
कुछ न कुछ कमियां निकालते ही रहें
परिपूर्ण तो कोई भी नहीं
वे भी नहीं
फिर हममें ही दोष ढूंढने की आदत पड गई लोगों को
अगर ढूंढने चलोगे खामियां
तो एक क्या हजार नजर आएंगी
हममें भी तुममें भी
अब नहीं करना है यह सब
न कुछ सोचना है
बस बाकी जो जिंदगी बची है
उसमें बुद्ध बन जाना है ।
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