भाई की कलाई सूनी न रहें
हर बहन यह चाहती है
बडे मनोयोग से वह भाई को राखी बांधती है
बलैया लेती है
आरती उतारती है
टीका करती है
तब रक्षा सूत्र बांधती है
न जाने भगवान से कितनी मिन्नते करती है
सलामत रहे उसका भैया
भाई बदले में उपहार देता है
वह उपहार लेने नहीं आती
उसने तो स्वयं ही दिया है
अपना हिस्सा भी कभी नहीं मांगा है
अपना अधिकार भी नहीं जताया है
कोई समझे पैसों के लिए
पैसा से उसको प्रेम को मत तौले कोई
वह द्वार पर आई भिखारन नहीं
उस घर की हिस्सेदार है
न जताया इसका यह मतलब नहीं
समझा न जाए
उसे बोझ माना जाएं
वह इस घर के सुख दुख की भागीदारी है
उसकी माता - पिता के घर में हिस्सेदारी है
वह समानता और सम्मान दोनों की हकदार है
यह हर भाई को समझना पडेगा
वह बेटी है
पराया धन नहीं
वह भी उतने की हकदार जितना आप
एहसान न जताए
एहसास करें
वह बेटी है
वह बहन है
यह उसका आभार है
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