देखा है मैंने
बहुत कुछ होते हुए
उम्र का तजुर्बा है
अर्श से फर्श
फर्श से अर्श तक आते देखा है
उठते और गिरते देखा है
सफलता और असफलता देखा है
नफरत को प्यार
प्यार को नफरत में बदलते देखा है
दुश्मन को दोस्त
दोस्त को दुश्मन बनते देखा है
मुफलिसी भी देखी है
अमीरी भी देखी है
अपनों को देखा है
परायों को भी देखा है
भक्ति को देखा है
नास्तिक भी देखा है
भक्त और भगवान के संबंधों को देखा है
कायरता और वीरता को देखा है
वाचाल और मौन को देखा है
शाकाहारी और मांसाहारी को देखा है
नशे के आदी और बिना नशे वाले को एक - दूसरे की जगह देखा है
जवानी भी देखा और बुढ़ापा भी देखा
सीधा - सादा और चालाक भी देखा
अभिमान और नम्रता भी देखा
होशियार और मूर्ख भी देखे
निर्माण और विनाश भी देखा
सत्य और असत्य देखा
इतिहास को भी बदलते देखा
कल को जो पूजनीय थे उनसे घृणा करते भी देखा
एहसान मंद और एहसान फरामोश को देखा
सब कुछ भूलने वाले भी देखा
मान सम्मान भी देखा
आहत होते भी देखा
तजुर्बा तो यही बताता है
यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं
कभी भी कुछ भी हो सकता है
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