बेचारा पुरूष
सब काम करता है
मेहनत करता है
दर - दर भटकता है
परिवार के लिए रोजी - रोटी का इंतजाम करता है
सुख सुविधा जुटाता है
अपने दो कपडों में रहता है
पत्नी गहनों और कपडों से लदी रहती है
घर की मालकिन
जो चाहे जैसा चाहे वह करें
फिर भी बेचारी
रोना - धोना उसका जन्मसिद्ध अधिकार
सारी सहानुभूति उसके साथ
बच्चे भी उसी के करीब
उसी के पक्षधर
इन्होंने किया ही क्या है
यह ताना तो हमेशा
उठते - बैठते
थका - हारा घर आए
पत्नी की सुने
ऑफिस में बाॅस की सुन आए
दो पाटों में पीसता यह बेचारा
घर हो या बाहर
पत्नी और माँ के बीच भी कभी-कभी
अब इससे ज्यादा बेचारा कौन ???
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