Tuesday, 12 October 2021

कारवां गुजर गया

वह पढने में  अव्वल आती थी
क्या अंकगणित क्या रेखागणित
सबके सवाल चुटकियों में हल कर देती थी
शिक्षक भी तारीफ किए बिना नहीं  रह पाते थे
वही जीवन का गणित अब तक हल न कर पाई
शतकों बीत गए
आज भी जस का तस

वह साहित्य की पुजारी थी
कथा - कहानियों में मन रमता था
उपन्यास जब तक खत्म नहीं होता तब तक सोती नहीं
क्या रामायण क्या महाभारत
सब दिमाग में फिट थे
भाषण देने की कला में माहिर
लोग मंत्रमुग्ध हो सुनते ही रह जाते थे
पूरा हाॅल तालियों से गूंज उठता था
लेकिन लोगों के तानों का जवाब न दे पाती थी
जिंदगी के महाभारत में हर बार हार जाती थी

वह सिलाई - बुनाई की कला में माहिर थी
क्या बखिया क्या तुरपाई सब लाजवाब थे
फटे कपडों को इस तरह सी देती पता ही न चलता
जिंदगी को भी रफू करती रही
फटे सिलती रही
तब भी वह कहीं न कहीं से उधड ही जाता
मुंह चिढाने लगता

वह चित्रकला में माहिर थी
ऐसे ऐसे चित्र बनाती
कागज पर उकेरती कि चित्र जीवंत हो उठता
क्या रंग क्या ब्रश
जब हाथ में लेती तब चित्र  खिल उठता
वही हाथ बेलन से गोल - गोल रोटी  बेलने के कारण बात सुनते रहें
तवे पर हाथ जलते रहे
मुंह से ऊफ तक न कह पाते रहें

वह खेल - कूद में तेज थी
क्या छलांग लगाती थी
क्या दौड में सबको पीछे छोड़ जाती थी
वही आज जिंदगी की दौड में सबसे पीछे रह गई
सबको आगे जाते देखती रही
कारवां गुजर गया ।

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