कभी-कभी अक्षर भी साथ नहीं देते हैं
भावनाओं को उकेरना चाहते हैं
पर शब्द ही खामोश हो जाते है
समझ नही पाते
क्या लिखे क्या न लिखें
कलम भी सुस्त पड जाती है
दिमाग सुन्न हो जाता है
कल्पना खो जाती है
कलम और शब्दों से खेलने वाला
किंकर्तव्यविमूढ़ बन जाता है
उसके हथियार की धार कम हो जाती है
जब लेखनी ही साथ न दे
शब्द और अक्षर ही साथ न दे
तब क्या कवि और क्या उसकी कविता
क्या लेखक और क्या उसकी लेखनी
सब ठप्प।
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