तुम तो चले गए मुझे छोड़कर
भगवान बन गए
बोधि ज्ञान की प्राप्ति हुई
भगवान बुद्ध कहलाए
पूजें जाने लगे
पर मेरा क्या
मैं तो जो तब थी वह आज भी हूँ
राजकुमार सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा
राहुल की माँ
राजमहल की रानी
मैं वह सब कैसे छोड़ देती
मालूम होता तो साथ चल पडती
सात फेरों का वचन निभाती
तुम्हारे साथ साथ मैं भी तपस्या रत रहती
मैं भी देवी कहलाती
पूजी जाती
तुम्हारे साथ कपिलवस्तु नगरी जाती
अफसोस ऐसा हुआ नहीं
क्योंकि तुम जो स्वार्थी थे
तुम्हें अपनी पडी थी
जिम्मेदारी से मुक्त होना था
बोधि वृक्ष के नीचे बैठ तपस्या करना आसान था
राजकुमार सिद्धार्थ
यहाँ तो मुझे रहना था
सबके प्रश्नों का उत्तर देना था
भावी राजकुमार को बडा करना था
राजमहल संभालना था
सबकी लाज रखनी थी
एक साथ इतने उत्तर दायित्व जो थे
उसके साथ-साथ तुम्हारी प्रतीक्षा भी करनी थी
जब तुम राजमहल के द्वार पर भिक्षाम देही करते आओगे
तब तुम्हारी झोली में क्या डालूंगी
क्या भिक्षा में दूंगी इस याचक को
राजमहल की रानी द्वार पर खडे याचक को खाली हाथ कैसे लौटाती
तुम दुनिया के लिए भगवान होंगे
मेरे लिए तो वही सिद्धार्थ हो
तुमको तपस्वी और गेरुए वस्त्र में देखना मुझे कभी गंवारा नहीं
मैं क्या संसार की किसी भी नारी को
जानते हो सिद्धार्थ
तपस्वी बनना आसान है
गृहस्थ बनना कठिन
यह ज्ञान आज मैं तुमको देती हूँ
हिमालय की कंदरा में बैठ
पेड के नीचे बैठ बोधि प्राप्त करना आसान है
एक साधारण मनुष्य बनना मुश्किल ।
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