गुस्सा अग्नि समान है
गुस्सा विनाश का कारक है
गुस्से में हो जाती मति भ्रष्ट
सही - गलत का नहीं रहता भान
न जाने क्या - क्या कह जाते हैं इसी वजह से न जाने कितनी दरार आ जाती है
बरसों से संभाले रिश्ते पल भर में बदल जाते हैं
नहीं रहता वाणी पर नियंत्रण
अपशब्द बोल जाते हैं
फिर जीवन भर पछताते हैं
ऑखों में लालिमा
शरीर में थर्राहट
आवाज में गुर्राहट
वीभत्स कर देता है हमारा रूप
उस क्षण हम जैसे मानव से शैतान बन जाते हैं
गुस्सा हमको ही खा जाता है
पाप का भागीदार बना डालता है
क्रोध तो आएगा ही
अगर हम जीव है तो
पर याद रखें
हम भोलेनाथ नहीं है
तीसरे नेत्र वाले शंकर जी की शक्ति नहीं है
गुस्से से हम डराना चाहे
किसी को अपना बनाना चाहे
यह तो संभव नहीं
गुस्सा क्षणिक हो पर हानिकारक न हो
आपे में रहें
डोर इतनी ही खींचें कि वह टूटे नहीं
सामने वाले का तो कुछ नहीं बिगड़ा
आप खामखाँ बदनाम हो गए
तभी तो भाई
क्रोध पर नियंत्रण रखें
उसका गुलाम न बनें।
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