आत्म निर्भरता का पाठ पढा
आत्म निर्भर भी हुए
कहीं तो एक कसक रही
कोई मनुहार करें
कोई मनाए
हम भी जिद करें
अपनी बात पर अड जाए
अपनी जिद पूरी करवा के ही माने
यह हम आज तक नहीं कर पाए
माता - पिता की मजबूरी देखा
बचपन में ही समझदार हो गए
उन्हें क्यों तकलीफ देना
ब्याह हुआ
ससुराल में भी डर डरकर रहे
पति से भी कभी रूठ नहीं पाए
न किसी चीज की मांग कर पाएं
समझौता करते रहे
अपनी जरूरतों से
गलत को भी सही मानते रहें
नजरअंदाज करते रहें
जानती थी
कुछ हासिल नहीं होगा
सिवाय ताने के
सो चुपचाप रही मन मारकर
जिंदगी के इस पड़ाव पर भी चुप
बच्चे सयाने हो गये
पढ लिख गए
वे भी कहते हैं
तुम्हें क्या पता
चुप बैठो
फालतू बात मत बोलो
शादी के बाद बहू - दामाद से भी डरकर रहना
कोई बात का बुरा न लग जाए
संभल कर रहें
क्योंकि बच्चों की जिंदगी का सवाल है
जमाना बडा खराब है
ऐसे ही समय बीत गया समझदारी में
आगे भी चुप रहने में ही भलाई।
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