पतझड़ का मौसम आया है
पेड से पत्ते झड रहे हैं
थोड़े दिन में ठूंठ सा हो जाएंगा
रौनक खत्म
फिर मौसम का इंतजार
निराश है यह सोचकर
तभी पेड से लिपटी लता बोल पडी
अरे मैं तो हरी भरी हूँ
तूने आसरा दिया है
सहारा दिया है
तब मैं कैसे रौनक़ कम होने दूंगी
जी भर कर फैलूगी
हरियाली से भर दूंगी
कभी तूने सहारा दिया था
उसके एवज में इतना तो बनता है
अभी भी आश्रित हूँ
फल - फूल रही हूँ तेरी कृपा से
बस अपने से दूर मत करना
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