Monday, 29 November 2021

मन तो नहीं बदला है

तुम जैसी भी हो
मुझे पहली जैसी ही लगती हो
उम्र का तकाजा है
बदलाव आना स्वाभाविक है
मन तो नहीं बदला
वह तो पहले जैसा ही है
यह बालों की सफेदी
यह चश्मा लगी हुई ऑखे
कुछ टूटे हुए दांत
लडखडाते हुए पैर
यह तुम्हारे अकेले का नहीं
हमारा भी यही हाल है
तब क्यों सोचना
न मैं वह रहा
न तुम वह रही
शरीर पर तो किसी का बस नहीं
मन तो नहीं बदला है
तुम्हारे बालों की सफेदी शुभ्र चांदी जैसी लगती है
ऑखों का चश्मा बताता है तुम कितनी जानकार हो
दांतों की पोपली हंसी मन भाती है
पैर की बात न पूछो
जब चलती हो
तब गाने का मन करता है
   तौबा यह मतवाली चाल
कभी-कभी हंसी आती है
तुम जब कहती हो
लगता है
बुढापे में सठिया गया हूँ
सठियाया नहीं हूँ
सच से रूबरू हूँ
यह साथ केवल जवानी तक का तो नहीं
जन्मों का साथ है
वह हर हाल में निभाना है

No comments:

Post a Comment