Saturday, 4 December 2021

कुछ तो बदला

हम तो वहीं है
जरा भी नहीं बदले
जस का तस
जैसे थे वैसे ही
अलबत्ता तुम जरूर बदल गए
अब वह पहले जैसा रौब नहीं रहा
वह क्रोध भी अंगार जैसा नहीं रहा
वह मनमानी भी नहीं रही
बस हम ही सही
वह भावना नहीं रही
समझौता तो तुम्हारी डिक्शनरी में नहीं था
वह भी अब थोड़ा  थोड़ा दिखता है

क्या यह मजबूरी है
क्या उम्र का तकाजा है
जो भी है अच्छा ही है
देर आए दुरुस्त आए

इस तुम्हारी हठधर्मिता ने
कितना कुछ बिगाड़ दिया है
क्या कुछ नहीं झेलना पडा है
कितना मन मारना पडा है
यह तुम कैसे समझोगे
आज भी एक बात तो है तुममें
मैं गलत हो ही नहीं सकता
ईगो हावी है फिर भी
जो बदला वह भी कुछ कम नहीं

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