जन्मभूमि धर्म और जाति से ऊपर होती है
देशभक्ति इनकी मोहताज नहीं होती
वे कैसे लोग हैं जो एक सैनिक की मौत पर जश्न मनाए
क्या यही उनका धर्म सिखाता है
फिर अधिकारों की बात करते हैं
अधिकार चाहिए तब तो कर्तव्य करना भी धर्म है
देश की आन बान शान की सुरक्षा हर नागरिक का कर्तव्य हैं
देश दिलोजान से प्यारा होना चाहिए
दुश्मन की वाहवाही करना
शर्म आनी चाहिए
सैनिकों की मौत का मातम न मना सके
जश्न तो मत मनाइए
अपने लिए और घृणा मत पैदा करिए
ऐसा करिए कि
लोग सम्मान से देखे
डर और घृणा से नहीं
अपना स्थान बनाना है और कायम रखना है
यह तो पारसी से सीखे
वे भी अपना धर्म मानते हैं
लेकिन उनकी देशभक्ति में किसी को संदेह नहीं
वे भी बाहरी है पर आज अपनों से भी ज्यादा अजीज हैं
भाभा और टाटा ही इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं
बनना है तो
अब्दुल हमीद बने
अब्दुल कलाम बने
देश के निंदक नहीं
अपनी ही मातृभूमि के प्रति ऐसा रवैया
यह तो किसी भी कौम को शोभा नहीं देता
तब कहा जाता है
हमें शक की निगाह से देखा जाता है
क्या करें लोग
यह तो स्वाभाविक ही है
विरोध करें ऐसे लोगों का
उनको बहिष्कृत करें
दिखाए कि
देशविरोधी गतिविधियां हम बर्दाश्त नहीं कर सकते
फिर वह कोई भी हो
हमारा अपना भाई ही क्यों न हो
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