आज घर , घर नहीं अजायब घर हो गए हैं
जहाँ कितने करीने से चीजें रखी है
देश - विदेश से लाए हुए सामान
एक से एक नायाब शो पीस , झूमर
एक से एक डिजाइन के बने फर्नीचर
घर की फूलों से मोती की लडियो से सजावट
फिर भी वह चमक नहीं
वह धमक नहीं
कुछ उदास सा लगता है
घर लोगों से बनता है
लोगों की चहल-पहल नहीं
उनकी आवाज नहीं
उनका लडना - झगड़ना , बतियाना नहीं
हंसना- खिलखिलाना नहीं
एक मायूसी दिखती है
वह रौनक नहीं
फर्नीचर
महंगे महंगे सामान
गुलदस्ता और झूमर
कालीन और परदे
इससे तो अजायब घर लगता है
अपना और अपनों से घर वाली बात इसमें कहाँ ??
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