हो गई विहान
अब तो चलो
खेत और खलिहान
आलस त्यागो
खुरपी कुदाल उठाओ
फसलें कर रही इंतजार
उनको भी कुछ खाद - पानी दो
कुछ देखभाल करों
तभी तो यह लहलहाएगी
तुमको मन माफिक अनाज देंगी
कब तक बैठ रहोगे
भगवान भरोसे
सरकार भरोसे
कुछ अपने हाथों का भी बल दिखाओ
फसलें उगाकर दिखाओ
बैठ रहने से
आलस करने से
कुछ काम नहीं होने वाला
कब तक सरकारी कोटे का मुफ्त का अन्न खाओगे
उगाओगे तभी तो पाओगे
तुम तो किसान के बेटे हो
धरती माता के लाल हो
तुम ही अपना कर्म नहीं करोगे
तब दूसरा कौन करेंगा
शहरों की चकाचौंध में खोकर
गाँव से पलायन कर
कुछ नहीं हासिल होगा
न यहाँ के न वहाँ के
बीच में ही फंस कर रह जाओगे
छोड़ो यह सब बातें
हो गई विहान
अब तो चलो
खेत और खलिहान
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