सब मंदिर के कपाट बंद
अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार सबने ग्रहण का पालन किया
जो परंपरा चली आ रही है
क्या करना है क्या नहीं करना है
क्या सावधानी बरतनी है
समय जरूर बदला है
जब हम छोटे थे तब अम्मा कहती थी आज हमारे भगवान पर ग्रहण लगा है
इसलिए जल्दी वे उससे मुक्त हो यह प्रार्थना करनी है
लोग भजन कीर्तन करते थे
खाना - पीना सब बंद रहता था
दूध वगैरह के ऊपर ढकने पर तुलसी की पत्ती या गोबर का कंडा रखते थे
गर्भवती औरत को तो हर चीज की सख्त मनाही थी
यहाँ तक कि सोना भी नहीं
छुरी- कांटे- कैंची से दूर
एक लडका था हमारे पडोस में
उसके एक हाथ में केवल एक अंगूठा था तो कहते थे उस दिन उनके घर में झगड़ा हुआ था
माँ ने गुस्से में ध्यान नहीं रखा और अपना नख काट लिया
इसी से ऐसा हुआ है
यह सब धारणाए थी पर कितना वैज्ञानिक दृष्टिकोण था
बच्चा माँ के गर्भ में पानी की थैली में रहता है
जल पर वनस्पति पर प्रभाव होता ही है
तभी तो ग्रहण में खाना न खाना होता था न रखना
ग्रहण छूटने के बाद पूरे सदस्य नहाते थे
दे दान छूटे ग्रहण
वालों की आवाज आती थी
कोई कपड़े तो कोई अनाज दान दिया जाता था
ईश्वर हमको हर विपत्ति से बचाते हैं तब उन पर विपत्ति आई है तो हमारा भी फर्ज है उनको मुक्त कराना राहु और केतु से
भक्त और भगवान का यह रिश्ता हमारे हिंदू धर्म में
इसे क्या नाम दे
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