Thursday, 10 November 2022

मैंने जिंदगी को बडे नजदीक से देखा है

मैंने जिंदगी को बडे नजदीक से देखा है
कभी उसे फर्राटे से भागते देखा है
कभी धीमी गति होते देखा है
कभी- कभी सरकते देखा है
कभी तो ट्रैफिक में फंसते देखा है
कभी गढ्ढे में से निकलते देखा है
कभी धंसते भी देखा है
कभी सपाट और स्मूथली भी देखा है
यह तो अनिश्चित है
जाना तो है ही
चलना तो है ही
पहुंचना तो है ही
अब कैसा रास्ता मिले
यह तो स्वयं वह भी नहीं जानती
बस चलना जानती है 

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