बस अपनों से नहीं
बहुत तकलीफ देह होता है
जब अपने रूठ जाते हैं
बातचीत बंद कर देते हैं
तब ऐसा लगता है
बर्दाश्त क्यों नहीं कर लिया
सह क्यों नहीं लिया
क्या जरूरत थी विवाद करने की
किसी का कहा हुआ
सत्य ही है
दूसरों का बर्दाश्त कर लिया
तब अपनों का बर्दाश्त करने में क्या हर्ज है
अपने तो अपने ही होते हैं
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