हम भी बीतते जाते हैं
एक - एक दिन खत्म होते जाते हैं
इस बीतने की प्रक्रिया में बरसों लग जाते हैं
न जाने कितने मोड आते हैं
कितने घुमाव आते हैं
हम चलते जाते हैं
एक - एक मौसम भी हमसे छूटता जाता है
कब वसंत आया
कब पतझड़ आया
हम समझ पाते
इससे पहले ही वह चला जाता है
हमें सोचने के लिए छोड़ जाता है
क्या बीता कैसे बीता
इसका हिसाब किताब लगाते रह जाते हैं
गुणा - गणित करने लग जाते हैं
क्योंकि अब ज्यादा कुछ बचा नहीं
जो बचा है वह बीत जाएंगा
पर कैसे
यह तो सवाल जेहन में रहता ही है
अब तक नहीं सोचा
अब सोचने को बाध्य है
चौथा हिस्सा बीतना बाकी है
उसका क्या हश्र होगा
यह तो कोई नहीं जानता
बस बीत जाएं
यही बात मन में आती है
जब तक हमने समझा
जीवन क्या है
जीवन बीत गया ।
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