माँ घर संवारती रहती है
माँ बच्चों का भविष्य बनाने का प्रयास करती रहती है
माँ सबका पेट भरती रहती है
माँ सबकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करती रहती है
माँ रात - दिन एक कर देती है
वह कभी शिकायत नहीं करती सब उससे करते रहते हैं
उसकी हर बात में मीन मेख निकालते हैं
वह हममें सब गुण देखती है
उसकी सुबह सबसे पहले और रात सबसे बाद में होती है
सोते सोते भी वह दूसरे दिन के बारे में सोचती है
वह अपनी पसंद का खाना भूल जाती है दूसरों की पसंद का बनाते बनाते
वह तब भी खुश रहती है
वह अपने संवारना भूल जाती है
सपने भी अब अपने लिए नहीं अपनों के लिए देखती है
माँ न हो तो घर भी घर कहाँ लगता है
न जाने क्या-क्या सहती है
कितना टूटती है पर
सबको जोडकर रखती है
स्नेह बंधन में बांधे रखती है
माँ का क्या
वह हमसे कहाँ कभी दूर होती है
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