पांच किलो अनाज देकर पेट भर रही
चूल्हा जलाने की झंझट खत्म गैस जो दे रही
दवाई और अस्पताल का मंहगा खर्च का जिम्मा उठा रही
टायलेट बनवा रही
नया घर दे रही
और चाहिए क्या
रोटी - मकान का इंतजाम तो हो ही रहा है
सुबह-सुबह फारिग होने के लिए शौचालय
ज्यादा फिर सोच क्यों??
बेकारी - मंहगाई से क्या लेना देना
विकास और देश की समस्याओं पर क्यों चर्चा
गाना सुना था
दाल - रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ
मंदिर भी बन ही रहे हैं
अब इससे ज्यादा क्या चाहती जनता
ज्यादा तो चाहिए नेताओं को
अपनी दो - चार पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए
आम जनता खास बनकर क्या करेंगी
वह खास बस चुनाव के समय होती है
पहले नेता हाथ जोड़ते हैं
बाद में वह जोडती है
उसको एहसास कराते हैं तुम्हारा राज
बाद में स्वयं राज करते हैं
यही होता है प्रजातंत्र में
जनता तो जनार्दन है
पर उसका हाल ????
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