Sunday, 19 May 2024

माॅ की मार

माॅ  के मारने पर हमसे ज्यादा चोट माँ को लगती थी
मार हम खाते थे ऑखों से ऑसू उसके आते थे
जो मारे वही दुलराए 
यही जिद भी होती थी हमारी
मार कर गोद में लेकर चुप कराना 
यह दूसरा कौन कर सकता है
न करेगा न कोई करने देगा
सही कहा है
माॅ की छडी फूल से भी ज्यादा कोमल होती है
वह लगती नहीं थी 
उसकी डांट और मार मन पर नहीं लगता 
उसमें भी एक मजा है
जिसने खाया हो वह ही जानेगा 

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