मैं अकेला खड़ा सोचता रहा
जीवन में क्या खोया क्या पाया
क्या मेरी खता हुई
सब मुझसे दूर हो गए
मैं ना चल सका उन रास्तों पर
जो उन तक जाती थी
अपनी ही शर्तों पर जीना
नहीं किसी को भाया
न मुझे किसी से कोई गिला न शिकवा- शिकायत
आत्मसंतुष्टि है दिल में
जो भी किया दिल से किया
न किसी को धोखा ना छल
उसके सामने सब है
जो भी सजा दे सब कुबूल है
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