Saturday, 4 January 2025

जिंदगी फिर न मिलेगी दुबारा

कब तक कोमल बने रहोगे 
कब तक पीड़ा पीते रहोगे
कब तक चुप रहोगे 
कब तक अपमान सहोगे 
कब तक दिखावा करते रहोगे 
कब तक ढोल पीटते रहोगे 
कब तक एकतरफा रिश्ता निभाते रहोगे 
कब तक गलत का समर्थन करोगे 
कब तक क्रोध को दबाकर रखोगे
कब तक शालीनता का कवच धारण करते रहोगे 
कब तक सबको खुश रखने की कोशिश करते रहोगे 
आखिर कब तक ??
कहीं ऐसा न हो 
एक दिन यह मन का गुबार फूट पड़े
सब ढह जाए 
इससे पहले ही संभल जाओ 
जीवन तुम्हारा 
जीने का हक है ना
बस दूसरों का जीवन जीते रहो
अपना कब जीओगे 
अपने लिए भी जी लो 
खुल कर मनमौजी - मनमर्जी कर लो 
जिंदगी फिर न मिलेगी दुबारा 

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