अब बात बढ़ाव का मन नहीं
जब कोई न मुझे
उलझाव ठीक नहीं
बात बताते - बताते थक गए
हार कर आखिर चुप हो गए
मान लिया तुम ही सही
लेकिन पूरे गलत तो हम भी नहीं
हुई होगी गलतियां
उसका हमें भी है गिला
उसकी सजा भी मिली ही
नहीं तो हम वह शख्स नहीं
जो किसी के आगे झुके
स्वाभिमान से परिपूर्ण
जो डोलता ही रह गया
हर किसी के सामने
हम बिना गलत के भी साबित होते रहें गलत
उसको भी स्वीकार कर लिया
प्यार से भरे जो थे
वह हिलोरे मार रहा था
हम हिचकोले खा रहे थे
हम मझधार में फंसे थे
हाथ- पैर मार रहे थे
जीवन नैया जो किनारा ढूंढ रही थी
साथ ही साथ आईना भी दिखा रही थी
बहुत कुछ देखा
बहुत कुछ समझा
अब भली खामोशी ही
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