Friday, 28 March 2025

अब तक समझ नहीं आया

बोलने का अधिकार हर किसी को 
सब बोलते रहे बस वह सुनती रही 
जब भी बोलना चाहा किसी न किसी ने चुप करा दिया 
बचपन में माॅ ने कहा था 
लड़कियां ज्यादा बोलती नहीं है चुप रहना सीखो 
कोई बोले तो बर्दाश्त कर लो 
शादी हुई ससुराल में बात - बात पर ताने 
जवाब नहीं देना था यही सिखाया था सो सुनते रहे 
पतिदेव भी जब तब आक्रोश उतारते रहे 
न गलती हो तब भी 
तब भी चुप ही रहे रिश्ता जो निभाना था 
माता - पिता की इज्जत का सवाल जो था 
अब बच्चें बड़े हो गए 
तब भी चुप रहना है 
क्या है आपको तो कुछ समझ ही नहीं आता 
ऐसे होते - होते ऐसा स्वभाव बन गया 
गलत को भी सही कहा सही माना 
कभी अपनों ने कभी परायों ने खूब  सुनाया 
अगर प्रतिरोध करना चाहा तो प्रतिबंध लगा दिया 
कभी झगड़ालू तो कभी वाचाल साबित कर दिया 
कभी जोरदार आवाज में घुड़क कर 
कभी हाथ छोड़कर 
ऐसा भी नहीं कि कोई मेरी उपेक्षा करता है 
बहुत प्यार करते हैं सब मुझसे 
माता - पिता ने भाईयों ने पति ने बच्चों ने 
भरपूर प्यार और सम्मान दिया और देते भी हैं
मैं घर की धुरी हूँ 
मेरे बिना पत्ता भी नहीं हिलता 
बस बोलना नहीं है सुनना है 
जो सब बोले वह करना और मानना है 
किसी की बात को मन पर नहीं लगाना है 
कोई माॅ है कोई भाई है कोई पति है कोई बच्चें हैं 
सब तो अपने उनकी बात का क्या बुरा मानना 
इसे अब आजादी कहें या बंधन 
अब तक समझ नहीं आया 

No comments:

Post a Comment