बिना कुछ बोले
अपना प्रेम लुटाती रहती है
इस स्वार्थी दुनिया में क्या यह संभव है ??
हाॅ वह अभी भी वैसी ही है
हम बदल गए हैं
उसे तकलीफ दे रहे हैं
खत्म कर रहे हैं
वह तो सदियों से साथ निभाती है
वह न रहें तो हम भी न रहेंगे
हमारी सांस का आधार भी वह ही है
उसके बिना हम मर जाएगे
फिर भी हम उसको मार रहे हैं
यह नहीं कि उसका संरक्षण करें
जतन करें प्यार से
उन्नति कर रहे हैं
प्रकृति को नष्ट कर रहे
आभारी होना चाहिए उसका
सांसों की डोर थामे हैं वह
उसको भी हम थाम रखे
यह तो हमारा फर्ज बनता है
उसका कर्ज है हम पर
उसको तो उतार नहीं सकते
कर्म तो कर सकते हैं
उसको सजोने - संवारने का दायित्व ले लो
उसके प्रति आभार जता लो
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