मैं मथुरा गई थी ,वहॉ से प्रसाद लेकर आई थी
खुशी - खुशी लेकर गई
ऑफिस में सबको बॉटने लगी
सब ले रहे थे ,एक सहकर्मी ने भी लिया
पर जैसे ही उसने अगला वाक्य सुना
ऐसे लगा करंट लग गया हो
हाथ का प्रसाद वापस डब्बे में डाल दिया
कारण कि वह दूसरे धर्म के है,तो हमारा प्रसाद कैसे खाएगे
मन खिन्न हो उठा
प्रसाद में क्या रखा था
मिठाई ही समझ कर खा लेते
रोज साथ उठना - बैठना है पर इतना दुराव
मेरा ईश्वर ही सबसे बडा
यह भावना व्याप्त है लोगों में
यह अनपढ ही नहीं पढे- लिखे लोगों में भी दिखाई देगा
हर एक - दूसरे के भगवान को नीचा दिखाने की कोशिश में
मानो भगवान से बैर हो
मत्था मत टेको पर अपमान तो मत करो
किसी की भावनाओं का सम्मान तो करो
अगर प्रसाद ले ली या चादर चढा दी या मोमबत्ती जला दी तो क्या फर्क पड गया
आपके भगवान तो वहीं रहेंगे
उनको तो कोई बदल नहीं सकता
न धर्म बदल जाएगा
फिर इतना क्यों डरना
स्वयं पर विश्वास नहीं या अपने ईश्वर पर?????
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Friday, 4 November 2016
स्वयं पर विश्वास नहीं या अपने ईश्वर पर ????
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