Friday, 7 August 2015

आज भी मुंशी प्रेम चंद जी उतने ही प्रासंगिक हैं| (Munshi Premchand)

                                                               
आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कलाकार एंव उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी रचनाओं मे दीन दलित ,पतित शेषित लोगो के यथार्थ जीवन का मार्मिक चित्रण किया है
सेवासदन, प्रेमा श्रम ,रंगभुमी,कर्मभूमी ,शतरंज के खिलाडी, निर्मला,कायाकल्प ,गबन का तो कोई सानी नहीं
कफन ,सवासेर गेहूँ और गोदान तो भारतीय किसान और मजदूर का जीवंत चित्रण है
आज भी किसान की हालत किससे छिपी नही है
आए दिन आत्महत्याएँ हो रही हैं
मुंशी जी ने अपने समय के,अपने देश का,अपने समाज की समस्याओ को बडी सशक्त अभिव्यक्ति दी है
साहित्य समाज का दर्पण होता है
भारत का पूरा समाज उनकी रचनाओं मे समाया हुआ है ,उनकी रचनाओं में ऐसी चेतना है जो कभी नष्ट नही होगी
आज १३५ साल बाद भी ऐसे लगता है कि वे अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवंत हो उठे हो
भारतीय हिन्दी साहित्य में वे मील का पत्थर हैं भारत में ही नहीं पूरे विश्व में उनकी जयंती मनाई जा रही है
इस पर हमे गर्व होना चाहिए
ऐसे गुदडी के लाल कभी कभी ही जन्म लेते हैं

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