Wednesday, 13 June 2018

घर

आशियाना बनाने मे जिंदगी बीत गई
आज जब बना तो लगा बहुत कुछ पीछे छूट गया
रहते थे किराए के घर मे
हर.वक्त डर सताता
कब परवाना आ.जाय मकान मालिक का
न ज्यादा सामान रख सकते
न इच्छा अनुसार सजा सकते
कहीं न कहीं लगता अपना घर हो
बच्चे बडे होते गए
किराए का घर बदलते रहे
बरसों की मेहनत और जमापूंजी से
घर तो तैयार
अब कोई बंधा नहीं नियमों से
अपना घर है जो
पर जब घर है तो लोग नहीं
सब बडे हो गए
अब खुद का घर बनाएंगे
हम ही अकेले रह गए
घर के साथ

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