हमें ईमारत में बडे फ्लैट चाहिए था
वह भी समुंदर के किनारे
ताकि हम उसका नजारा देख सके
ऊंची ऊंची लहरों को लहराता देखे
उसको आपस मे अठखेलियां करता देखें
सांझ को डूबते हुए सूरज की लालिमा को देखे
उसे अपने कैमरे में कैद करें
वह नयनाभिराम दृश्य को निहार कर प्रसन्न हो ले
इसलिए हमने समुंदर को पाटा
उससे उसका अधिकार छीना
हमें छुट्टी बितानी थी
शहर से कहीं दूर प्रकृति के सानिध्य में रहना था
पहाड़ो पर चढना था
उसके बर्फ का आनंद लेना था
इसलिए हमने पहाड़ो को तोड़ा
वहाँ सडकों और होटलों का निर्माण किया
इस तरह उसका अधिकार भी छीना
हमें घर बनाना था
फर्नीचर बनाना था
तब हमने जंगल को काटा
पेडो पर कुल्हाड़ी चलाई
वन्य जीवों को बेघर किया
अपना आशियाना बसाने के लिए
हर जीव को नष्ट-भ्रष्ट करना शुरू किया
इस तरह उनका भी अधिकार छीना
हमने नदियों को दूषित किया
सारी गंदगी उसमें बहाई
माता कहकर भी माँ का आँचल मैला किया
स्वच्छ शुभ्र को कालिमा से भर दिया
तालाब और कुओं को पाट दिया
निर्माण को छोड़ विनाश किया
वह भी अपने विकास के लिए
इस तरह उनका भी अधिकार छीना
अब बची जीवनदायिनी हवा
उसको तो हमने कहीं का न छोड़ा
अपने ही हाथों विषैला बना दिया
इतना कि सांस लेना मुश्किल
जो जीवन देती है
उसीको विष पिला दिया
प्रदूषित कर दिया
उसको और अपने दोनों को बीमार बना दिया
इस तरह से उसका भी अपमान किया
अंत में बारी मिट्टी की
उसको खोद खोद कर बंजर बना दिया
ईटे का भट्टा निर्माण कर दिया
मिट्टी और रेत को निकाल कर
अपने सपनों का महल तैयार करते रहे
इस तरह से मिट्टी को भी रौदा
सबको सिसकने पर मजबूर कर दिया
तब अब मुस्कान कहाँ से आएगी
जो किया है
उसका फल तो भुगतना ही पड़ेगा
प्रकृति तो बदला लेगी ही
और वह जब अपने पर आ जाएंगी
तब विनाश तो निश्चित है
माटी कहे कुम्हार से
तू क्यों रौदे मोय
एक दिन ऐसा आएगा
मैं रौदूगी तोय
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