हवा तो चल रही है
पर यह भी बंदिशो में जकडी सी लग रही है
इसे तो कोई रोक टोक नहीं
फिर भी यह मायूस है
वह लोग जो रोज दिखाई देते थे
वे आज नजर नहीं आ रहे
बगीचा तो सुनसान है
न बच्चों की चहल-पहल
न बूढो की धीमी चाल
न कोई व्यायाम न हास्य का माहौल
यहाँ तो मन ऊब रहा है
चलो ,चले समुंदर किनारे
अरे यहाँ भी वही शांतता
कोई नहीं
सारा वीरान
बस लहरों की आवाज
न प्रेमी जोड़े
न टहलते लोग
न अपने पालतू डाॅगी के साथ
न शाम की ढलते सूरज की छटा देखते लोग
क्या बात है
कोई संकट गहराया है
लगता है बहुत बडा है
समझ नहीं आता
किससे पूछू
कोई तो नहीं आसपास
खुसर पुसर होती
तब पास से गुजरती
सुन लेती
पर इस पसरे सन्नाटे में क्या सुनूं
क्या बोलू
कहाँ डोलू
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Monday, 13 April 2020
हवा बडी असमंजस में है
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