Wednesday, 12 May 2021

भूलता तो नहीं है

रक्तपान उस दिन किया था
गला आज जल रहा है
क्या  अपमान  की अग्नि  शांत हो गई
भरी सभा में  अपमान  हुआ  था
पितामह , श्वसुर  , कुल गुरू  , पांच बलशाली पति तथा अन्य  परिवारजन मुक  दर्शक बने बैठै थे
भरी सभा में  हस्तिनापुर  की कुलवधू  को रजस्वला स्थिति में  खींच कर लाया जाता है
चीरहरण  का प्रयास  किया  जाता है जंघा दिखा कर बैठने का इशारा
वेश्या  से संबोधन  किया जाता है । कोई  कुछ नहीं  कहता 
वह अपमान  द्रोपदी  कैसे  भूलती  । अपमान  केवल उसका नहीं  हुआ  था हस्तिनापुर  का हुआ  था
युधिष्ठिर  धर्मराज  थे वह नहीं  थी ।बाकी पांडव  उनका अनुसरण  कर सकते थे ।संधि  हो सकती थी पर वह नहीं  चाहती थी
तभी अपने सखा कृष्ण  से उसने संधि न करने की  विनंती  की ।
महाभारत  का कारण  वह बनी यह स्वीकार  था
अधिकार  छीना जा रहा था हर समय
राजा पांडु वन में  भटके
पांचों  पांडव भी वन में  भटके
सुई की नोक बराबर जमीन  भी नहीं  दूंगा
अधिकार  का हनन हो रहा था
सब सत्ता का खेल था
धृतराष्ट्र  और उनके पुत्र  सर्वेसर्वा
पांडव वन में  भटके तब ठीक
जहाँ  अधिकार  की बात आई वहाँ  छल हुआ
युद्ध  तो निश्चित  था
कारण  द्रोपदी  नहीं  धृतराष्ट्र  का सिंहासन  के प्रति मोह
छोड़ना नहीं  किसी का हक देना नहीं
कब तक अन्याय  सहा जाता
रक्तपान  और केशों  को रक्त से धोने से अपमान  की  ज्वाला  शांत नहीं  हुई
वह तो युद्ध  पश्चात  भी बनी रही
जब तक कि हिमालय  चढते समय गिर कर बर्फ  में  समा नहीं  गई
भूलना इतना आसान  नहीं  होता
अगर ऐसा होता तब अंबा जन्म  पर जन्म  नहीं  लेती
शिखंडी  बन भीष्म  की मृत्यु  का  कारण  नहीं  बनती
अगर ऐसा होता तो गांधारी  ऑखों  पर पट्टी  नहीं  बांध लेती और क्रोध  में  अपने  ही गर्भ  पर प्रहार न  कर डालती
अगर ऐसा होता तो गांधार  नरेश शकुनि  बहन के घर पर सब छोड़ छाड नहीं  रहते
अपमान  की  ज्वाला  हमेशा  धधकती  रहती है उस पर कितने ही मरहम  लगाया जाय  तब भी
भूलता  तो नहीं है
अपमान  करने वाला भूल  जाए
अपमानित  होने वाला कभी नहीं  ।

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