Friday, 28 May 2021

न जाने जिंदगी कब खिलौना बन गई

खिलौनों  से खेलते - खेलते जिंदगी  कब खिलौना बन गई
गुड्डे - गुडिया  , गिल्ली - डंडा ,छुपम- छुपाई
सब समय  के साथ गुम हो गए
पहले हम नाच नचाते थे गुड्डों- गुडियों  को
अब वक्त  नचा रहा हमको
पहले हम डंडे से गिल्ली को उछालते  थे
अब वक्त  का डंडा हमारी खिल्ली  उडा रहा है
पहले हम छुपम - छुपाई खेलते थे
छिपते  - छिपाते थे
आज वक्त  खेल रहा है
कभी धूप कभी छांव कर रहा है
सुख - दुख की ऑख मिचौली में
हम कहीं  खो कर रह गए
जीवन ही खिलौना बन गया
हम उलझ - पुलझ  रह गए
खिलौनों  से  खेलते - खेलते जिंदगी  कब खिलौना  बन गई।

No comments:

Post a Comment