Friday, 12 November 2021

प्यार और समर्पण

तुम कठोर  हो
तुमको ज्यादा बात करना पसंद नहीं
अपने काम से काम
किसी भी बात का दो टूक जवाब
किसी को अच्छा लगें या न लगें
लिपड- चिपड करना तुम्हें पसंद नहीं
दिखावा करना तुम्हें आता नहीं
मीठा बोलना तो तुमने सीखा ही नहीं
यह सब हैं तुममें
इसे क्या कहें
जो हैं सो हैं
जैसे हैं वैसे हैं
इतना सब होते हुए भी
तुम्हारा साथ अच्छा लगता है
तुम न बोलो पर मैं तो बोलती ही हूँ
तुम्हारा चुपचाप सुनना भाता है
अचानक सुनते - सुनते
एक वाक्य बोल देना
मेरी सारी बोलती बंद
मैं कल्पना की दुनिया में विचरण करने वाली
किताबों में खोई रहने वाली
सपने देखने बुनने वाली
तुम धरातल पर रहने वाले
वास्तविकता में जीने वाले
मैं भविष्य में गोते लगाने वाली
तुम वर्तमान में जीने वाले
मैं कल - कल करनेवाली
तुम आज मे रहने वाले
यही सच्चाई 
यही ईमानदारी
तो पसंद है
लाग - लपेट करना नहीं
प्यार का इजहार तो दूर
रूठ जाए तो मनाना भी नहीं  आता
अपने आप ही मान जाती हूँ
तुम्हारी खामोशी
तुम्हारी मायूसी
तुम्हारी उदासी
बहुत कुछ बयां कर देती है
गलती तो तुम अपनी मान नहीं सकते
साॅरी बोलने में बेइज्जती लगती है
फिर भी एक निश्छल दिल है
जो दिखता कठोर है
अंदर से कोमल  है
बच्चों जैसा है
पुरुषत्व दिखाने में वह छिप जाता है
कठोरता , कोमलता पर हावी
एक जिम्मेदारी का एहसास
एक विशाल पेड़
जो एक नाजुक सी लता को सहारा दे रहा है
इतरा भी रहा है
लता उसके सहारे हैं
यही गलतफहमी है
लेकिन वह प्यारी है
जिसमें अपने प्यार के प्रति पूरी शिद्दत से समर्पण है

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