Friday, 5 December 2025

ऐ धरती

धरती कितनी सहनशील है तू 
कितना कुछ होता है 
तब भी सबको समेटे रखती है 
अपनी संतानों का अतिक्रमण सहती रहती है
तेरे प्यार को ये समझ नहीं पाते 
कभी-कभार गुस्सा हो जाती है 
कुछ संकेत दे देती है 
फिर भी ये नहीं सचेतते 
अपने ही नाश पर ऊतारु रहते हैं 
ये सोचते नहीं है 
कि क्या कर रहे हैं 
किसमें इनकी भलाई है 
तू भी कब तक इनकी मनमानियों को बर्दाश्त करती रहेगी 
हर बार चोट पहुंचाते हैं 
हर समय तकलीफ देते हैं 
तू फिर भी उफ्फ नहीं करती 
अपना प्यार बरसाती रहती है 
ये बम - बारूद बरसाते हैं 
तुझे छलनी करते रहते है 
आखिर कब तक 
होता रहेगा 
ऐसा 

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