ढूँढने चली
बात नहीं बनी
वहाँ नजर आई
जहाँ मैं खुश होकर भी खुश नहीं थी
शांति ढूंढ रही थी
वह भी शांत जगह पर नहीं दिखी
न महसूस हुई
अशांति में ही शांति दिखी
जीवन माया - मोह है
व्यर्थ में जकड़े हुए हैं
यहाँ कोई किसी का नहीं
उस जकड़न में ही स्वतंत्रता दिखी
बंधन में ही आनंद लगा
इतनी उलझन
सुलझाने बैठी
सुलझा न पाई
गुस्सा भी उन्हीं से प्यार भी उन्हीं से
निराशा भी उन्हीं से आशा भी उन्हीं से
उपेक्षित भी उन्हीं से अपेक्षित भी उन्हीं से
लगता है सबसे संबंध खत्म कर दूं
संन्यास ले लूं
दुनियां से संबंध तोड़कर मुक्त हो जाऊ
मुक्ति भी आसान नहीं
जीवन भी चाहिए
मृत्यु भी स्वीकार नहीं
जिनसे तिरस्कार वहीं जीवन आधार
क्या गूढ़ रहस्य जीवन का
नर्क में रहना नहीं चाहते
स्वर्ग में शांति नहीं मिलेगी
मोह - माया में जकड़ा इंसान
मकड़ी के जैसे बुने अपने जाले में उलझा - पुलझा
यह अपना ही जाल तोड़ नहीं पाता
जाने क्यों वह जान बूझकर अंजान बना रहता है
कहना चाहता है कह नहीं पाता
सब कुछ जानते समझते चुप रहता है
असत्य और गलत को स्वीकार करता है
अपने को दोषी मान लेता है बिना दोष के
न जी पाता है न खुश रह पाता है
सबको खुश रखने की कोशिश में स्वयं को खत्म करता रहता है
अपना वजूद मिटाता जाता है
फिर भी वह ईश्वर से यही कहता है
रहने दो हे देव
मेरा मिटने का अधिकार
स्वर्ग का सुख नहीं भाता मुझे
धरती की गोद में ही संघर्ष रत रहने दो
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