बूँद पडे गल जाना है
यह संसार झाड और झाखर
आग लगे बरि जाना है
यह विचार है कबीर के
अरे रहने दो हे देव
मेरा मिटने का अधिकार
नहीं चाहिए स्वर्ग सुख
संसार माया जाल है
यह हम सुनते हैं
जानते भी हैं
फिर भी इस मायाजाल में जकड़े रहना हमें भाता है
हम मुक्त नहीं होना चाहते
अच्छा लगता है
हम विदुर जैसे महात्मा नहीं
धृतराष्ट्र जैसा बनना चाहते हैं
हम दशरथ जैसा बनना चाहते हैं
पुत्र वियोग में जान देना
वह चलेगा
हम उद्धव नहीं बनना चाहते
साकार प्रभु को चाहते हैं
प्रेम में पागल राधा महान लगती है
न जाने कितनों से हम बंधे हैं
माता - पिता , भाई-बहन
पति-पत्नी, पुत्र- पुत्री
इनके अलावा और बहुत से रिश्ते
इसी मायाजाल में जकड़
हम कभी हंसते हैं
कभी रोते हैं
कभी-कभी उदास और निराश होते हैं
अवसाद में भी चले जाते हैं
दुख- सुख को अनुभव करते हैं
कुछ भी हो जिंदगी से बहुत प्यार करते हैं
न भी करें तो अपनों से बहुत प्यार करते हैं
सोचते हैं
हम न होंगे तो इनका क्या होगा
हम खुदा नहीं है
होनी को रोक भी नहीं सकते
फिक्र तो होगी ही
और यह कोई दबाव में नहीं
हमारी अपनी इच्छा
जीवन का सार ही यही है ।
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