Saturday, 29 April 2023

जीवन का सार

यह संसार कागद की पूडिया 
बूँद पडे गल जाना है
यह संसार झाड और झाखर 
आग लगे बरि जाना है
यह विचार है कबीर के

अरे रहने दो  हे देव
मेरा मिटने का अधिकार 
नहीं चाहिए स्वर्ग सुख

संसार माया जाल है
यह हम सुनते हैं 
जानते भी हैं 
फिर भी इस मायाजाल में  जकड़े रहना हमें भाता है
हम मुक्त नहीं होना चाहते 
अच्छा लगता है
हम विदुर जैसे महात्मा नहीं 
धृतराष्ट्र जैसा बनना चाहते हैं 
हम दशरथ जैसा बनना चाहते हैं 
पुत्र वियोग में जान देना 
वह चलेगा 
हम उद्धव नहीं बनना चाहते 
साकार प्रभु को चाहते हैं 
प्रेम में पागल राधा महान लगती है 
न जाने कितनों से हम बंधे हैं 
माता - पिता , भाई-बहन 
पति-पत्नी,  पुत्र- पुत्री 
इनके अलावा और बहुत से रिश्ते 
इसी मायाजाल में जकड़ 
हम कभी हंसते हैं 
कभी रोते हैं 
कभी-कभी उदास और निराश होते हैं 
अवसाद में भी चले जाते हैं 
दुख- सुख को अनुभव करते हैं 
कुछ भी हो जिंदगी से बहुत प्यार करते हैं 
न भी करें तो अपनों से बहुत प्यार करते हैं 
सोचते हैं 
हम न होंगे तो इनका क्या होगा
हम खुदा नहीं है 
होनी को रोक भी नहीं सकते 
फिक्र तो होगी ही 
और यह कोई दबाव में नहीं 
हमारी अपनी इच्छा 
जीवन का सार ही यही है ।

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