Thursday, 27 April 2023

गहराई

मैं बहुत गहरा हूँ 
तभी अकेला हूँ 
कोई मुझमें उतरना नहीं चाहता
डरते हैं 
कहीं डूब न जाएँ 
कहीं भंवर में फंस न जाएँ 
किनारे पर तो आते हैं 
दूर से देखते हैं 
खेलते हैं 
मैं उनके पास दौड़ कर आता हूँ 
तो पीछे हट जाते हैं 
मेरा मन बहुत विशाल है
पानी ही पानी 
वह किसी काम का नहीं 
विशालता के बावजूद 
न दे सकता हूँ 
न मदद कर सकता हूँ 
दिन भर जलता हूँ 
वाष्प बन कर उडता हूँ 
पानी बन कर बरसता हूँ 
नाम मेरा नहीं 
बरखा का होता है
नदी - तालाब का होता है
मुझे कोई महत्व नहीं देता 
ऐसी गहराई का क्या
जिसमें कोई उतरे ही नहीं। 

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