अब भला पीछे मुड़कर क्यों देखना
जो लगा उचित वह किया
जितनी समझ उतना समझा
परखा कितना
धोखा कितना
इस्तेमाल कितना
गलती कितनी
निर्णय कहाँ सही कहाँ गलत
लेखा - जोखा से क्या होगा
उससे सबक तो सीखा
वहीं तो नहीं दोहराया जाएंगा
कल कोई दूसरा मसला
उससे सब अंजान
पछता कर हासिल क्या
ऐसा होता तो
वैसा होता तो
जिंदगी अनिश्चित
यहाँ मौसम का मिजाज कब बदले
कोई नहीं जानता
अचानक क्या हो जाए
कुछ वश में नहीं
समय के अनुसार चलना है
वह पल पल बदलता है
ऐसा लगता है
सब ठीक है
करवट ले लेता है
कुछ सही नहीं हो रहा है
सही होने लगता है
बस रौ में बहते जाओ
तैरते रहो
मझधार में फंसो तो हाथ- पैर मारो
किनारे पर पहुंचो
खुश हो जाओ
बस चलो समय की धारा संग
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