Friday, 5 December 2025

सबसे वाकिफ हैं

मुझे अपने बारे में सब पता है 
मैं कहाँ सही कहाँ गलत 
इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूँ 
मुझे क्या करना चाहिए 
क्या नहीं करना चाहिए 
क्या किया 
उससे भी अंजान नहीं 
अंजाम भी भुगता है 
कोई शिकवा - शिकायत नहीं 
कर्म किया मैंने फल भी तो भुगतनी पड़ेगी मुझे 
किसी और को बताने और जताने की जरूरत नहीं 
अपनी जिंदगी अपने हाथ 
नहीं किसी का चाहिए साथ 
साथ मिला तो भी ठीक 
न मिला तो भी ठीक 
हर कंकरीले- पथरीले रास्तों पर चली हूँ 
हर आग में तपी हूँ 
फूल बिछे नहीं मिले थे राहों में
चलती रही अब भी चलना जारी है 
गिरने से डर नहीं 
हारने की परवाह नहीं 
सब मुझे समझे यह संभव नहीं 
वह क्या समझे मुझे जो इन रास्तों पर चले ही नहीं 
मंजिल उनको आसानी से मिल गई 
सब लोग इतने खुशनसीब नहीं होते 
न कोई वरदहस्त न किसी का गुरुर 
तब भी कोई गम नहीं 
हम अकेले ही चले 
बीच-बीच में रुक भी गए 
फिर चल पड़े 
ईश्वर का हाथ और साथ रहा हमेशा 
तभी तो हर राह आसान होती गई 
अपनी राह ही नहीं दूसरों की भी राह में उनके साथ रही 
वे आगे निकल गए 
हम वहीं ताकते रह गए 

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