सुधीन्द्र कुलकर्णी के मुख पर कालिख पोती गई जो नहीं होना चाहिए था
एक पाकिस्तानी लेखक की किताब के विमोचन के विरोध में
आखिर क्यों इतनी नफरत
लेकिन अगर सीमा पर गोलीबारी होती रहे और हमारे सैनिकों के सर काटे जाय तो हम संगीत और गजल का आनन्द कैसे ले सकते है
और यह लेखक तो मिनिस्टर भी रह चुके है
इन लोगों को भी सोचना चाहिए
भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट का खेल खेल नहीं होता है जंग होता है
मर मिटने का प्रश्न होता है
कभी पाकिस्तानी झंडे फहराए जाते है
कभी मिठाइयॉ बॉटी जाती है
यह तो जख्मों पर नमक छिडकने जैसा है
कलाकार ,कलाकार होता है
आज भी शेक्सपियर और टालस्टाय को हम पढते है
आज भी महात्मा गॉधी को शांति और अहिंसा के पुजारी के रूप में सारा विश्व जानता है
तसलीमा नसरीन को पनाह दी जाती है
पर कब तक?
यह पाकिस्तान का इतिहास रहा है जब जब शॉति और समझौते के लिए प्रयत्न शुरू किया गया
तब तब गोली बारी हुई
यह एक अच्छी बात हुई कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्र्द फडनवीस ने सुरक्षा व्यवस्था कर विमोचन करवा दिया
सरकार ने अपना काम किया पर पाकिस्तान को भी सोचने की जरूरत है
वहॉ से लोग इलाज के लिए आते हैं
लोगों की आपस में रिश्तेदारी है फिर यह खुन खराबा क्यों.
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