बुन्देलखंड में लोग घास की रोटी खाने पर मजबूर है
टेलीविजन पर यह खबर दिखाई जाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने अपने अधिकारियों को वास्तविकता का पता लगाने के लिए भेजा
ईतिहास में पढा था कि राणाप्रताप जंगल में घास की रोटी खाइ पर अकबर के सामने घुटने नहीं टेके
यह तो एक राजा के स्वाभिमान का सवाल था
लेकिन बुन्देलखंड के ग्रामीणों की तो मजबूरी है
साग या चटनी के साथ घास की रोटी खा रहे है
इसी उत्तरप्रदेश में सैफई महोत्सव भी मनाया जाता है
जिस पर करोडो रूपये खर्च किए जाते हैं
समाजवादी कहे जानेवाले मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर
प्रधानमंत्री के स्वागत में लाखों -करोडो का खर्च मंच की साज सज्जा करने में चला जाता है
बसपा केआलाकमान को रूपयों से तोला जाता है
मतलब देश गरीब तो नहीं है
गोदाम में अनाज सड जाते हैं रखने की जगह न होने के कारण
फिर लोग इतने मजबूर क्यों कि दो समय की रोटी भी मयस्सर नहीं
संसद में बहस चलती रहती है पर इस बात पर नहीं
केन्द्र में बैठी सरकार या अखिलेश की सरकार क्या कर रही है
तमिलनाडू से सीखे जहॉ अम्मा जयललिता गरीबों को बिल्कुल कम में अनाज उपलब्ध कराती है
यह कैसी विडंबना है कि एक तरफ लोगों के पास गाडियों की संख्या बढ रही है जिससे प्रदूषण फैल रहा है तो दूसरी तरफ कोई घास की रोटी खा रहा है
रोटी ,कपडा और रहने के लिए छत तो मिलनी ही चाहिए
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