Thursday, 28 January 2016

भाग्य और कर्म के चक्रव्यूह में फँसा इंसान

हम बचपन में दादी से कहानी सुनाने को कहते तो कहती ,क्या कहानी सुनाउ , कहानी तो हमरे ऊपरे है
फिर शुरू हो जाती थी कहानी
तब उनकी बात का मतलब समझ नहीं आता था पर आज समझ आ रहा है कि हर जिंदगी एक कहानी है
और इस पर जितना लिखा जाय कम ही है
यह एक बार जो शुरू होती है तो अनवरत चलती ही रहती है
अतीत ,वर्तमान और भविष्य के भंवरजाल में जकडा ही रहता है आदमी
संघर्ष और परिस्थितियों को मात करते कुछ आगे बढ जाते हैं तो कुछ योग्यता और मेहनत के बावजूद भाग्य की ठोकरे खाते रहते हैं
हर कोई कदमों के निशान क्यों नहीं छोड जाता
चलता तो हर कोई है
कुछ अर्श पर तो कुछ अर्श पर ही रह जाते हैं
भाग्य हमारी मुठ्ठी में कैद है पर अगर यही सही होता तो हर व्यक्ति कहॉ से कहॉ पहुंच गया होता
पर ऐसा होता नहीं है
यह वही भाग्य है कि महान योद्धा कर्ण जीवन भर उपेक्षित का दंश सहते रहे
पांडवों को जीवन भर भटकाता रहा
दुर्योधन और धृताराष्ट्र के शीश पर हस्तिनापूर का राजमुकुट सजाता रहा.
भगवान राम जो माता कैकयी के वरदान के कारण निर्वासित हुए 
आज भी अयोध्या में उनको अपनी जमीन नहीं मिली है
हॉ उनके नाम पर लोगों ने जरूर सियासत कर अपना मकसद साध लिया है
जब भाग्य भगवान राम का पीछा नहीं छोडा तो
साधारण व्यक्ति और इंसान की क्या बिसात है

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