माता नऊ महीने बच्चे को पेट में रखती है अपने रक्त मॉस से उसका सींचन करती है
मॉ के बिना तो विश्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती
ईश्वर से भी बडी मॉ की जगह मानी जाती है क्योंकि उनको भी तो अवतरित होने के लिए मॉ की कोख का सहारा चाहिए
मॉ की ममता और महानता का तो बखान हुआ ही है
पर पिता उसकी महानता
जन्म देती जरूर है मॉ पर पिता उसकी जिंदगी बनाने के लिए क्या नहीं करता
फिर वह चाहे मेहनत ,मजदूरी हो या बेटी के द्वार पर सर झुकाता हुआ
या फिर उसकी पढाई के लिए अपनी जन्मभर की पूंजी लगाना या खेत गिरवी रखना
राम के वियोग में राजा दशरथ ने प्राण तजे थे
यह साबित करता है कि पिता की भूमिका संतान के जीवन में क्या मायने रखती है
उसकी छत्रछाया में निश्चिंत होकर जीता है
क्योंकि सारा भार वह स्वंय हरण करता है
अपने ऑसुओं और दूखो को छिपाता पिता
कहीं भी मॉ के योगदान से कम नहीं ऑका जा सकता
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