Monday, 13 June 2016

उलझी हुई दुनियॉ

यह दुनियॉ इतनी उलझी हुई क्यों है
न खुद चैन से रहती है न दूसरों  को
हर किसी की जिंदगी में ताक- झाक करना
शब्दों और वाक्यों के बाण चलाना
फरेब और झूठ का मुखौटा ओढना
द्वेष और ईष्या से ग्रस्त
सीधे- साधे को रहना मुश्किल
दूसरों की तरक्की से जलन
कब किसको नीचे गिराया जाय,इस फिराक में
किसी के बारे में अपशब्द कहना और धारणा बनाना
कहा जाता है कि दुनियॉ की परवाह मत करो
पर जीना तो इसी दुनियॉ में है
न चाहते हुए भी संबंध बनाए रखना है
शब्दों के बाण भी सुनना है
क्योंकि मजबूर है हम
कब जाने किससे  काम पड जाय
इसी डर में हम जीते हैं
पडोसी से परेशान है पर कूढ कर रह जाते हैं
कुछ बोल नहीं सकते
रिश्तेदारों से परेशान है पर नाता तोड नहीं सकते
दोस्तों से परेशान पर छोड नहीं सकते
सहकर्मियों से परेशान है पर जवाब नहीं दे सकते
उनके बीच में ही रहना जो है
कहॉ जाए ,अकेले अलग- थलग होकर रह भी नहीं सकते
चुपचाप सब सहते हैं
और लोग इसका फायदा उठाने से नहीं चूकते
हम अच्छा रह सकते हैं पर दूसरे
हमारी अच्छाई का नाजायज फायदा उठाने से नहीं चूकते
यहॉ तो " जैसे को तैसा" का सिद्धांत ही सही है
मीठा बोलना और नम्रता कमजोरी की निशानी है
जवाब न देना कायरता है
दुष्ट और कपटी ज्यादा सुखी है
कर्म का फल सबको मिलता है पर ऐसे लोग तो किसी बात की चिंता नहीं करते
जीओ और जीने दो      को छोड केवल
  हम ही जीए. - बस यही दस्तूर है
मदर इंडियॉ का गाना  -
दुनियॉ में हम आए है तो जीना ही पडेगा
जीवन है अगर तो जहर पीना ही पडेगा

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