मैं राँबिन हूँ एक सफल व्यक्ति
आज मेरे पास घर है , परिवार है
पैसा है ,मान-सम्मान भी है
पर एक समय था जब मैं इन सबसे मरहूम था
मेरा जन्म दलित जाति मे हुआ था
माँ -बाप को गलिच्छ काम करते हुए देखा
हम ईश्वर के मंदिर भी.नहीं जा सकते
पाठ्शाला मे भी भेदभाव
तब छोटा था
समझ नहीं पाता कि हम इनके जैसे क्यों नहीं
गरीब है इसलिए
बडा हुआ , मिशनरी स्कूल मे पढ़ा
धीरे -धीरे उस धर्म मे आस्था जागी
रमेश से राँबिन बन गया
सब कुछ मिला
जीवन को अर्थ मिला
अब भेदभाव से दूर
नीची जात का नहीं
ईश्वर के दरबार मे भी सब समान
पर आज भी एक बात सालती है
मुझे यह.कदम क्यों उठाना पड़ा
अपने ही लोग ठुकराते हैं
फिर ईश्वर के नाम पर बरगलाते हैं
समानता तो अभी भी संविधान की किताबोँ मे
नजरिया तो नहीं बदला
रोटी-बेटी का संबंध नहीं होता
नीच का लेबल लगा ही है
ये धर्म के ठेकेदार स्वयं को बदले
तब किसी और पर उंगली उठाए
सेवा और समानता का पालन करें
ईश्वर ने सबको समान बनाया
तब ये कौन हैं ???
रमेश ,राँबिन नहीं बनेगा
अगर तुम उसे इंसान समझोगे
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