Wednesday, 23 May 2018

आई बरखा बहार

आई बरखा बहार
पड़े रस.की फुहार
नाच उठा मनमयूर
पक्षी की कलरव
कोयल की बोली
मेढक की टर्र टर्र
झिंगुर की झन झन
पेड़ों की सर्र सर्र
बिजली की तम - तम
बादल की गड़-गड़
हवा.की सन - सन
पानी की झर्र -झर्र
धरती की सौंधी गंध को
लाई है साथ -साथ
मन की अंगडाई को
पेडों की हरियाली को
झरने की फुहारों को
नदियों के उफान को
सब पर लहराती आई
तन -मन तृप्त करती
धरती को ठंडक पहुंचाती
सब त्रतुओ की रानी
यह है. हमारी बरखा रानी
राजा - रंक सबकी प्यारी
हर प्राणी की जीवनदायिनी
तुम बिन सूनी दूनिया सारी
इसलिए तो सबकी प्यारी
सबकी आशा तुम पर
बाट जोहते जन -जन
स्वागत मे बिछाते पलकें
जी भर प्यार लूटाते
बस तुम आती रहना
अपना स्नेह लूटाती रहना

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